________________
रूपवंत गुण पर
दासियां कहने लगी कि-हे स्वामिनी ! तू हम पर क्रोध न कर, कारण कि जगत् में अद्वितीय सुजातकुमार का रूप देखने के लिये किसका हृदय मोहित नहीं होता-(इससे हमको विलम्ब हुआ।) (यह सुन) मंत्रिप्रिया दासियों को कहने लगी कि-हे दासियों ! जब उस कुमार को इस रास्ते से जाता देखो तब मुझे सूचना करना ताकि मैं देख सकूकि-वह कैसा रूपवान है। . एक दिन सुगुण शिरोमणि मित्रों से घिरा हुआ सुजातकुमार उस मार्ग से जा रहा था । इतने में दासी के सूचित करने से मंत्रीपत्नी प्रियंगु अपनी सपत्नियों के साथ मिलकर उसे देखने लगी। तब कामदेव के रूप के प्रबल उफान को तोडने में पवन समान सुजात को देखकर मंत्रीपत्नी कहने लगी कि-जगत् में वही स्त्री भाग्यशाली है कि जिसका यह पति है। तदनंतर एक समय वह भभकेदार सुजातकुमार का वेष धारण कर अन्य सपत्नियों के बीच उक्त कुमार के वाक्य व चेष्टाएँ करके फिरने लगी।
इतने में मंत्री वहां आगया । वह घर का द्वार बन्द किया हुआ जानकर धीरे २ समीप आकर किवाड़ के छिद्रों में से देखने लगा। अपने अंतःपुर की चेष्टा देखकर वह विचार करने लगा कि बाहर बात प्रगट होगी तो पूर्णतः मान हानि होगी अतएव चिरकाल तक इस बात को गुप्त रखना चाहिये। - अब उक्त मंत्रीने एक झूठा पत्र लिखा उसमें लिखा कि 'हे. सुजात ! तू ने मुझे यह कहा था कि दस दिन के अन्दर मित्रप्रभ राजा को बांध लाऊंगा, परन्तु अभी तक क्यों विलम्ब करता है ? इत्यादिक विषय लिखकर वह पत्र राजा को बताया तो राजा भी विचार में पड़ा कि अरे ! ऐसा भला मनुष्य ऐसा काम कैसे कर सकता है ? अथवा लोभान्ध मनुष्यों को इस जगत में कुछ भी