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________________ सुजात की कथा ___ " चतुर्थ भाग गुण से हीन हो वह मध्यम पात्र और अर्ध भाग गुण से हीन हो वह अधम पात्र है." सुजात को कथा इस प्रकार है। दुश्मनों के दल से अपित चंपानामक नगरी में प्रताप से सूर्य की प्रभा को जीतनेवाला मित्रप्रभ नामक राजा था। उसकी धारणी नामक रानी थी। वहां धर्मपरायण और सुजनरूप कमलवन को आनन्द देने को सूर्य समान धनमित्र नामक श्रेष्ठि था । उसकी लक्ष्मा समान उत्तम रूप लावण्यवालो धनश्री नामक भार्या थी। उनको सैंकड़ों उपायों से लोगों के चित्त को चमत्कार करने वाला साथ ही शरीर को कांति से चकचकित एक पवित्र पुत्र प्राप्त हुआ। वह पुत्र रिद्धियुक्त कुल में उत्पन्न हुआ जिससे लोग कहने लगे कि इसका जन्म सुजात है । इसीसे उसका नाम सुजात रखा गया । ___ वह प्रतिपूर्ण अंगोपांगयुक्त तथा अनुपम लावण्य व रूपवान् होकर सर्व कलाओं में कुशल होकर क्रमशः यौवनावस्था को प्राप्त हुआ वह कभी तो जिनेश्वर की स्तुति तथा पूजा में वाणी और पाणि (हाथ) को प्रवृत्त करता और कभी भ्रमर के समान गुरु के निर्मल पद कमलों की सेवा करता था । (और कभी) जिनप्रवचन की प्रभावना करा कर अपने को पवित्र करता. (और) कभी जिनसिद्धान्त रूप अमृतरस को अपने कर्णपुट द्वारा पीता था। और ललित मनहर और सहृदय (मर्मज्ञ) जनों के हृदय को पकड़ने वाले वाक्यों द्वारा न्याय से बिराजते नगर में वह सकलजन को आनन्द देता था। उसी नगर में धर्मघोष नामक मंत्री की प्रियंगु नामक पत्नी थी। उसने (एक दिन) पीसना पीसने को भेजी हुई दासियों को विलम्ब से आने के कारण उपालम्भ (ठपका ) देने लगी । तब
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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