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भीम की कथा
क्षुद्रमति भीम जिनादिक की निंदा में परायण रहकर, मरकर के यह कुष्ठी हुआ है और अभी अनन्त भव भ्रमण करेगा।
(गुरु की यह बात सुनकर ) विक्रमकुमार ने जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त कर हर्ष से उल्लसित व रोमांचित हो गुरु के चरण कमल को नमन करके अति रमणीय श्रावकधर्म ग्रहण किया मणिरथ राजा भी विक्रम कुमार को राज्यभार देकर दीक्षा ले, केवलज्ञान पा मोक्ष को पहुचा।
जिनमंदिर, जिनप्रतिमा तथा जिन की रथयात्रा करने में तत्पर रहता हुआ, मुनियों की सेवा में आसक्त, दृढ सम्यक्त्वधारी, निर्मल चित्त विक्रम राजा पूर्ण कलावान् प्रति पूर्ण मंडल युक्त और दुरित अंधकार के विस्तार को न शकरने वाला चन्द्रमा जैसे कुवलय को विकसित करता है, वैसे पूर्ण कला से समस्त मंडल को वश कर पापरूप अन्धकार का नाश करके पृथ्वी के वलय को सुखमय करने लगा । पश्चात् कितनेक दिन के अनन्तर विक्रम राजा ने अपने पुत्र को राज्य धुरी का भार सौंप कर अकलंकसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की।
इस प्रकार अक्षुद्र याने गंभीर और सूक्ष्म बुद्धिमान हो, बहुत ज्ञान प्राप्त कर विधि से मृत्यु को प्राप्त हो स्वर्ग में पहुचा और अनुक्रम से मोक्ष को पहुचेगा। इस प्रकार अक्षुद्र गुणवान का समृद्धि
और क्षुद्र जनों का वृद्धित हुआ संसार सुनकर श्रद्धावान्, शांतवृत्ति श्रावक जनों ने सदैव शांत रह कर अक्षुद्रता धारण करना चाहिये ।
इस प्रकार सोम और भीम की कथा है। अक्षुद्रता रूप प्रथम गुण कहा, अब रूपवत्त्व रूप दूसरा गुण कहते हैं।
संपुन्नंगोवंगो, पंचिंदियसुन्दरो सुसंघयणो । होइ पभावणहेऊ, खमो य तह रूवा धम्मे ।। ९ ।।