SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ अक्षुद्रगुण पर भी कहने लगा कि-इंगित आकार पहिचानने में तू कुशल जान पड़ता है। तदनन्तर उस योगी की प्रार्थना से विक्रमकुमार उस बाला से विवाह कर योगी को विदा कर स्त्री के साथ अपने महल के बगीचे में आ पहुचा । यह सुन कमलसेना पूछने लगी कि भला, उसके बाद उसका क्या हुआ, तब उक्त वामन यह कह कर कि राजसेवा का वक्त हो गया है वहां से रवाना हुआ। __ अब तीसरे दिन वामन वहां आकर पुनः इस प्रकार कहने लगा कि-विक्रम कुमार ज्यों ही उद्यान में आकर कमलसेना के साथ क्रीड़ा करने लगा त्योंही उसको किसी ने आकर कहा कि-हे परकार्य करने में तत्पर रहनेवाले कुमार ! आज मेरा कार्य भी कर दे। तब कुमार बोला कि, तैयार हूँ। कारण कि जीवन का फल यह ही है। तब वह कुमार को विमान पर चढ़ाकर वैताढ्य पर्वतान्तर्गत कनकपुर के विजय नामक राजा के पास लेगया, वहां उक्त राजा ने उसे यह कहा, हे कुमार ! भदिलपुर का स्वामी धूमकेतु राजा मेरा शत्रु है । उसे जीतने के लिये मैंने कुल देवता की आराधना को तो उसने बताया कि इस कार्य में तू समर्थ है, इसलिये ये आकाशगामिनी आदि विद्याए ले. तदनुसार कुमार ने उक्त विद्याए ग्रहण की। __अब बहुतसी विद्याओं को सिद्ध कर घोड़े, हाथी और सुभटों की सैना लेकर चढ़आते हुए बिक्रमकुमार की बात सुन कर धमकेतू राजा घबराया और अतुल लक्ष्मीसंपन्न अपने राज्य को छोड़कर भाग गया जिससे उस राज्य को वश में कर शत्रु का दमन करके कुमार भी वापस स्वस्थान को आया । __ तब विजय राजाने भी बहुत हर्षित होकर अपनी सुलोचना नामक पुत्री का कुमार से विवाह कर दिया, जिससे कुछ दिन तक
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy