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भीम की कथा
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तब महाबलवान् कुमार (उक्त बनाव देखने के लिये) क्षणभर छिपी हुई जगह खड़ा रहा, इतने में विषम काम के जोर से पीडित योगी उक्त बाला को कहने लगा कि- हे श्वेत शतपत्र के पत्रसमान नेत्रवाली ! मुझे तेरा पति मान कर अनुग्रह करके स्पर्श कर कि-जिससे तू सकल रमणीय रमणियों में चूड़ामणि समान मानी जावेगी । तब वह रोती हुई बाला बोली कि-तू व्यर्थ अपनी आत्मा को क्यों बिगाड़ता है, तू चाहे इन्द्र या कामदेव हो तो भी तेरे साथ मुझे काम नहीं।
यह सुन रुष्ट हुआ जोगी ज्योंही बलात्कार अपने हाथ से उसे पकड़ने लगा, त्योंही उस बाला ने चिल्लाया कि- हाय हाय !! यह पृथ्वी अनाथ है कारण कि मैं श्रीपुर नगर के राजा जयसेन की पुत्री कमलसेना हूं, और मेरे पिता ने मुझे मणिरथ राजा के पुत्र विक्रमकुमार को दी हुई है।
हाय हाय ! (मुझ पर) यह कोई विद्याबल वाला जुल्म करने को तैयार हुआ है, यह सुन छिपा हुआ कुमार विक्रम अत्यन्त क्रोध के साथ वहां आकर उससे कहने लगा कि-जो मर्द हो तो हथियार ले ले और तेरे इष्ट देव का स्मरण करले, कारण कि- हे पापिष्ठ ! तू परस्त्री की अभिलाषा करता है अतएव अपने को मरा हुआ ही समझ ले । तब योगी भयभीत होकर कहने लगा कि- हे कुमार ! तूने मुझे परस्त्री का स्पर्श करते रोक कर वास्तव में नरक में पड़ने से बचाया है । पश्चात् वह योगी उसको उपकारी मानता हुआ रूप परावृत्ति करने वाली विद्या देकर कहने लगा कि तेरे भारी पराक्रम व साहस के गुणों से तथा तेरी ओर फिरी हुई इस कुमारी की दृष्टि से मैं सोचता हूं कि-तू विक्रमकुमार है। तब विक्रमकुमार