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अक्षुद्रगुण का वर्णन
इस प्रकार साधुओं को रुग्णावस्था होने के अभिप्राय से जो नियम प्रहग करना उले महात्मा पुरुषों ने परमार्थ से दुर समझना चाहिये । ४
- इस (क्षुद्र) से विपरीत अक्षद्र पुरुष सूक्ष्म वात को समझने वाला और भलोभांति विचार कर काम करने वाला होने से अपने पर तथा दूसरे पर उपकार करने को शत-समर्थ होता है, जिससे वहा यहां याने धर्म ग्रहण करने में योग्य याने अधिकारी होता है, सोम के समान।
नगग तथा रगण सहित उत्तम यति पदं वाले छद के समान नरगग कालेज याने मनुष्यों के समूह से सहि ओर सुयति याने श्रेष्ठ मुनिवरों अथवा श्रेष्ठ विश्राम स्थलों वाला कनकट नामक नगर है, उसमें विबुधाय याने देवताओं को वल्लभ वासव याने इन्द्र के समान विबुधप्रिय याने पंडितों को प्रिय ऐसा वासव नामक राजा था।
उस राजा की पुत्री कमला तथा कमलसेना और सुलोचना नामक दूसरी दो राजयुत्रियां मिलकर तीन तरुणियां दुस्सह प्रिय विरह से दुःखित थी । उनको एक दूसरे के स्वरूप की भी खबर नहीं थी परन्तु वहां रोतो हुई समान दुःख से दुःखित होकर एक जगह रह कर दिन बिताती थी। ... वहां एक सुगुगों से अवामन अर्थात् परिपूर्ण-परन्तु दिखाव से वामन पुरुष अपनो कलाओं द्वारा राजा आदि समस्त नगर जनों को बराबर प्रसन्न करता था।
उक्त वामन को एक समय राजा ने कहा कि जो तू विरहदुःखित तीन युवतियों को प्रसन्न करे तो सचमुच तेरी कला की होशियारी जान पड़े।