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धर्मरत्न के योग्य इकबीस गुण
उन इकवीस गुणों को उपार्जन करने का यत्न करना चाहिये, जिसके लिये पूर्वाचार्यों ने आगे लिखे अनुसार कहा है ।
ये इकबीस गुण जो कि आगे कहे जायंगे उनसे (जो) समेत याने युक्त हो अगर पाठान्तर में ('समिद्धो' ऐसा शब्द लें तो उसका यह अर्थहोता है कि)समृद्ध याने संपूर्ण होवे अथवा समिद्ध याने देदीप्यमान हो-वह इस को याने प्रस्तुत धर्मरत्न को योग्य यान उचित, जिनमत में यान अहेत् के शासन में भणित यान प्रतिपादित किया हुआ है-(किसने प्रतिपादन किया है ? इसके उत्तर में) उस बात के जानकारों ने इतना उपर से ले लेना, ___ उससे क्या [सिद्ध हुआ] सो कहते हैं-उसके उपार्जन में याने कि उन गुणों का उपार्जन याने वृद्धि के काम में-प्रथम याने सबस आदि में उनके लिये यत्न करना,
यहां यह आशय है कि-जैसे महल बांधने की इच्छा करने वाले जमीन साफ करके नींव आदि को मजबूती करते हैं, क्योंकि उससे ही उतना मजबूत महल बांधा जा सकता है-वैसे ही धर्माथियों ने भी ये गुण बराबर उपार्जन करना, कारण कि वैसा करने ही से विशिष्ट धर्म समृद्धि प्राप्त की जा सकती है, जिसके लिये [आगे कहा जायगा उसके अनुसार ] भणित याने कहा हुआ है, [किसने कहा हुआ है तो कि] पूर्वाचार्यों ने. इतना ऊपर से समझ लेना।
क्या कहा हुआ है वही कहते हैं:
धम्मरयणस्स जुग्गो, अकखुद्दो १ स्वयं २ पगइसोमो ३, लोगप्पिो ४ अकूरो ५ भीरू ६ असढो ७ सुदक्खिण्णो ८ लज्जालुओ९ दयालु १० मज्झत्थो सोमदिहि ११ गुणरागी १२