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धर्मरत्न के योग्य इकवीस गुण
तब मा बाप ने उसे आशीर दी और स्वजन सम्बंधियों ने उसका सन्मान किया, तथा नगर के लोगों ने उसकी प्रशंसा का, इस प्रकार वह भोग भाजन हुआ। । इस दृष्टान्त को खास तुलना यह है कि--अन्य याने सामान्य मणियों को खान समान देव-नारक-तियच गतियों में भटकते हुए जैसे तैसे करके जीव इस उत्तम माणे वालो खानसान मनुष्य गति को पा सकता है, और इस में भी चिंतामणि के समान जिन भाषित धर्म पाना (बहुत ही):दुर्लभ है। ....
व जैसे सुकृत नहीं करने वाला पशुपाल उक्त माणे रख न सका परन्तु पुण्यरूप धनवान वणिक पुत्र उसको प्राप्त कर सका, वैसे ही गुणरूप धन से हीन जीव यह धर्मरत्न पा नहीं सकता, परन्तु सम्पूर्ण निर्मल गुणरूप बहुत धनवान (ही) उसको पा सकताहै।
यह दृष्टान्त भलीभांति सुनने के बाद जो तुम्हें सद्धर्मरूप धर्म . ग्रहण करने की इच्छा हो तो अपार दरिद्रता को दूर करने में समर्थ सद्गुण रूपी धर्म को उपार्जन करो।
इस प्रकार पशुपाल की कथा है, और इस प्रकार (गाथा का. अर्थ पूर्ण हुआ)। . ..
(अब चौथी गाथा का अवतरण करते हैं:अब कितने गुण वाला होवे जो धमे पाने के योग्य हो? यह प्रश्न मन में लाकर उत्तर देते हैं:--
इगासगुणसमे श्री, जुम्मा एयस्स जिणमए भणिओ।
तदुवज्जणमि पढमं, ता जइयव्वं जत्रो भणियं ॥ ४ ॥ अर्थ-इकबीस गुणों से जो युक्त होवे वह सबसे प्रथम इस धर्मरत्न के योग्य माना जाता है, ऐसा जिन शासन में कहा है, अतएव