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विमलकुमार की कथा
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- अब विमल कुमार भी जिनस्तुति करके मंदिर से बाहिर निकला । और मित्र को कहने लगा कि इस रत्न को तू यहीं संभालकर रख दे । क्योंकि यह महारत्न किसी भी महान कार्य में काम आवेगा, व इसे आदर से सम्हाले बिना घर ले जाने से यह व्यर्थ जाता रहेगा। आपकी आज्ञा स्वीकार है । यह कहकर उसने वहीं गुप्तस्थान में वह रत्न गाड़ दिया । पश्चात् वे दोनों अपने २ घर को आये।
तदनन्तर कपटवश बुद्धि भ्रष्ट हुआ वह सामदेव का पुत्र सोचने लगा कि-विमल कुमार को ठग कर यह रत्न ले लेना चाहिये । इससे वह पीछा वहां आया। वहां उसने उक्त रत्न को निकालकर उसके स्थान में वस्त्र में लपेटा हुआ एक पत्थर गाड़ दिया और उक्त रत्न को दूसरे स्थान में गाड़ दिया। पश्चात् घर आकर रात्रि को पुनः विचार करने लगा कि-मैं उक्त रत्न को घर नहीं लाया, यह ठीक नहीं किया। क्योंकि-किसी ने भी उसे देख लिया होगा तो वह ले जावेगा । इत्यादि आलजाल सोचते हुए उस पापी को बन्धन में रहे हुए हाथी के समान लेश मात्र भी निद्रा नहीं आई।
प्रातःकाल होते ही वह उठकर झटपट उस स्थान को गया और वह रत्न लेने लगा। इतने में विमलकुमार उसके घर को आया । तो कुमार को ज्ञात हुआ कि-वामदेव उद्यान में गया है। जिससे वह भी शीघ्र वहां आया । वामदेव ने उसको आता देख उतावल में रत्न जहां छिपाया था उसे भूलकर, भय से शून्य हृदय हो वह पत्थर का टुकड़ा निकालकर कमर में रख लिया। इतने में विमल ने आकर पूछा कि-हे मित्र ! तू इतना