________________
२४०
कृतज्ञता गुण पर
अभव्य पुरुष को ये दश लब्धियां तथा केवलीपन, ऋजुमति और विपुलमति, इस प्रकार तेरह लन्धियां नहीं होतीं। वैसे ही अभव्य स्त्री को ये तेरह तथा मधुक्षीरावलब्धि भी नहीं होती। शेष हो सकती है।
अतएव इन आचार्य ने निश्चय वैक्रियलन्धि के प्रभाव से वह कुरूप किया था किन्तु इनका स्वाभाविक रूप तो यही है। इससे मैंने विस्मित होकर उनको तथा सर्व मुनियों को वन्दन किया । तब उन्होंने मुझे मुक्तिसुख का देने वाला धर्मलाम दिया।
पश्चात् आचार्य ने क्षणभर उनको अमृत दृष्टि के समान उपदेश दिया । तब मैंने एक मुनि को पूछा कि इनका नाम क्या है ? वे मुनि बोले कि-ये जगद्विख्यात बुध नामक लब्धि निधान हमारे गुरु हैं और ये अनियत विहार से विचरते हैं। ___ यह सुन मैं प्रसन्न हो गुरु को नमन करके अपने स्थान को गया और परोपकार करने में महान गुरु भी अन्य स्थान को पधारे।
जिससे मैं कहता हूँ कि- जो किसी प्रकार बुध सूरि यहां आवे तो आपके बन्धुवर्ग को सुख पूर्वक धर्म बोध करें। क्योंकिमेरे परिवार को भी धर्म में लाने के लिये उस समय उन परोपकारी महात्मा ने वैक्रियरूप धारण किया था । तब विमल बोला कि-हे सत्पुरुष ! उक्त श्रमणकेशरी को तू ही प्रार्थना करके यहां ला । विद्याधर ने यह बात स्वीकार की। पश्चात् रत्नचूड़ नेत्रों में अश्रु लाकर कुमार को आज्ञा ले उसके गुण स्मरण करता हुआ अपने स्थान को आया ।