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विमलकुमार की कथा
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तीर्थंकर की ऋद्धि देखने के लिये अथवा अर्थ समझने के लिये अथवा संशय निवारण करने के लिये जिनेश्वर के समीप जाते समय आहारक शरीर करने की आवश्यकता पड़ती है ।
___ आर्याए', अवेदी, परिहारविशुद्ध चारित्रचन्त, पुलाफ लब्धिवन्त, अप्रमादी साधु, चौदह पूर्वी साधु, आहारक शरीरी इनका कोई भी देचता संहार नहीं कर सकता। ... वैक्रिय लब्धि के द्वारा क्षणभर में परमाणु के समान सूक्ष्म हुआ जा सकता है। मेरु के समान विशाल बना जा सकता है । वे आक की रूई के समान हलका हुआ जा सकता है । एक वस्त्र में से करोड़ वस्त्र किये जाते हैं। एक घड़े में से करोड़ घड़े किये जा सकते हैं और मन चाहा रूप किया जा सकता है, विशेष क्या कहा जाय।
नरक में नारकी जीवों की विकुर्वणा उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त रहती है । तियंच और मनुष्य की विकुर्वणा चार मुहूर्त रहती है और देव की विकुर्वणा पन्द्रह दिवस पर्यन्त रह सकती है। ___ अक्षीण महानस लब्धिवान् जो भिक्षा ले आवे तो उसे स्वयं खाय तो खूट सकती है किन्तु दूसरे चाहे जितने व्यक्ति खाव वह कदापि नहीं खुट सकती । उक्त लब्धियां भव्य पुरुष को सब संभव हैं। अब भव्य स्त्री को कितनी संभव हैं सो कहते हैं। · अर्हत्पन, चक्रवर्तीपन, वासुदेवपन, बलदेवपन, संभिन्न श्रोतस्लब्धि, चारणलब्धि, पूर्वधरपन, गणधरपन, पुलाकलब्धि, आहारकलब्धि, ये दश लब्धियां भव्य स्त्री को भी प्राप्त नहीं होती।