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विमलकुमार की कथा
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भी उनके पीछे लगा । पश्चात् तीनों दृष्टि से बाहिर हो गये। तब उक्त खो रोने लगी कि हाय हाय ! हे नाथ ! आप मुझे छोड़कर कहां गये ? इतने में वह पुरुष जय प्राप्त करके आ गया । जिससे बह स्त्री अमृत से सिंचाई हो उस भांति आनंदित हुई। __ वह विद्याधर विमल को नमन करके कहने लगा कि, तूही मेरा भाई व तू ही मेरा मित्र है, क्योंकि तूने मेरी स्त्री को हरण होने से बचाया है। तब विमल बोला कि हे कृतज्ञ शिरोमणि ! इस विषय में संभ्रम करने का काम नहीं। किन्तु इस का वृत्तान्त कह । तब वह इस प्रकार कहने लगा कि
वैताठ्य पर्वत में स्थित रत्नसंचय नगर में मणिरथ नामक राजा था। उसकी कनकशिखा नामक भायों थी । उनका विनयशाली रत्नशेखर नामक पुत्र है । व रत्नशिखा और मणिशिखा नामक दो श्रेष्ठ पुत्रियां हैं। __ रत्नशिखा से मेघनाद नामक विद्याधर का प्रीतिपूर्वक विवाह हुआ। उनका मैं रत्नचूड़ नामक पुत्र हूँ। वैसे ही मणिशिखा का अमितप्रभ विद्याधर ने पाणिग्रहण किया । उसके अचल और चपल नामक दो बलवान पुत्र हुए। वैसे ही रत्नशेखर को भी उसको रतिकान्ता नाम की स्त्री से यह प्रिय चूतमंजरी नामक पुत्री हुई है।
हम सब ने बाल्यावस्था में साथ साथ धूल में खेल कर अपने कुलक्रमानुसार विद्याएं ग्रहण की हैं। अब मेरा मामा उसके मित्र चन्दन नामक सिद्धपुत्र की संगति के योग से जैनधर्म में अत्यंत आसक्त हुआ। उस महाशय ने मेरे माता पिता तथा मुझ को जिनधर्म कह सुना कर श्रावक धर्म में धुरंधर बनाया है । उक्त चंदन सिद्धपुत्र ने मेरा कुछ चिह्न देखकर