________________
२२०
विनय गुण पर
जीवित है वहां तक हे नरेश्वर ! आप प्रथम के स्नेह में वृद्धि करने के हेतु हमारी प्रार्थना सफल करो और आपके पुत्र को वहां भेजकर उसका लक्षण पूर्ण हाथ उसके हाथ के साथ मिलवाओ।
तब राजा ने मतिविलास नामक मंत्री के मुख की ओर देखा, तो वह विनय पूर्वक कहने लगा कि-हे स्वामिन् ! यह मांग बराबर योग्य है । इसलिये स्वीकार करो। ___तब राजा ने उक्त प्रधान पुरुष को कहा कि-जैसा कहते हो वैसा ही करो। तब वह प्रधान पुरुष अत्यंत हर्षित हो राजा के दिये हुए निवास स्थान में आया । ___ पश्चात् राजा ने अनेक सामन्त और मंत्रियों के साथ कुमार को वहां जाने की आज्ञा दी । तदनुसार वह अस्खलित चतुरंग सेना लेकर रवाना हुआ। वह मार्ग में अतिदूर स्थित सिद्धपुर नगर के बाहर आ पहुँचा । उस समय वह मूर्छित होकर बंद नेत्र से रथ के सन्मुख भाग में लुढक पड़ा। यह देख मध्यम के सैन्य में सहसा कोलाहल मच गया । जिससे आगे पीछे का तमाम सैन्य भी वहां एकत्र हो गया । तब मंत्री आदि कुमार को मधुर वचनों से बहुत ही पुकारने लगे किन्तु कुमार काष्ठ के समान निश्चष्ट होकर कुछ भी न बोल सका।।
वे सब व्याकुल होकर विविध प्रकार के औषध, मंत्र, तंत्र, और मणि आदि के विविध उपचार करने लगे, किन्तु कुमार को कुछ भी लाभ न हुआ। बल्कि वेदना अधिक अधिक होने लगी व उसके सर्व अंग विकल होने लगे। तब मंत्री आदि करुण स्वर से इस प्रकार विलाप करने लगे कि
हाय, हाय ! हे गुण रत्न के महासागर, अनुपम विनय