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भुवनतिलक कुमार की कथा
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नामक नगर था । उसमें धनद ( कुबेर ) के समान अति धनवान धनद नामक राजा था। उसकी पद्मशय ( श्रीकृष्ण ) के जैसे पद्मा स्त्री थी वैसी पद्मावती नामक रानी थी। उनके शेष पुरुषों में तिलक समान भुवनतिलक नामक पुत्र था। ____ उस कुमार के रूपादिक गुण कामदेवादिक के समान थे, परन्तु उसका विनय गुण तो अनुपम ही था। वह अवसर प्राप्त होने पर, महासमुद्र में से जैसे मेघ जलपूर्ण बादल ग्रहण करता है वैसे, विनयनम्र होकर उपाध्याय रूप महासमुद्र से कलाएं ग्रहण करने लगा। उसके वैसे विनय गुण से, उसे ऐसी विद्या प्राप्त हुई कि- जिससे उसने देवांगनाओं के मुख को भी मुखर बना दिया अर्थात् वे उसकी प्रशंसा करने लगीं। ___ एक दिन राजा आस्थान सभा में बैठा था, इतने में प्रसन्न हुआ द्वारपाल उसको इस प्रकार विनंती करने लगा कि- हे स्वामिन् ! रत्नस्थल नगराधीश राजा अमरचन्द का प्रधान बाहिर आकर खड़ा है। उसके लिये क्या आज्ञा है ? राजा ने कहा कि-शीघ्र उसे अन्दर भेजो। तदनुसार छड़ीदार उसे अन्दर लाया । वह राजा को नमन करके बैठने के अनन्तर इस प्रकार कहने लगा।
हे धनद नरेश्वर ! आपको मेरे स्वामी अमरचन्द ने कहलाया है कि-मेरी यशोमती नामक श्रेष्ठ पुत्री है । वह विद्याधरीओं द्वारा गाये हुए आपके पुत्र के निर्मल गुण श्रवण कर चिरकाल से उस पर अत्यन्त अनुरक्त हुई है । और वह, कमलिनी जैसे सूर्य की ओर रहती है वैसे कुमार ही का सदैव चिन्तवन करती हुई फूल तंबोल आदि छोड़कर जैसे वैसे दिवस बिताती है।.. ___वह बाला (आपके कुमार बिना ) अपने जीवन को भी तृण के समान त्याग देने को तत्पर हो गई है, किन्तु अभी