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विनय गुण पर
- इस प्रकार का विनय सर्व गुणों का मूल है। तथा चोक्त'--विणओ सासगे मूलं, विणीओ संजओ भवे ।
विणयाओ विप्यमुक्कस्स, कओ धम्मो को तवो।। विनय ही जिन शासन का मूल है। इसलिये संयत साधु को विनीत होना चाहिये । कारण कि- विनय रहित व्यक्ति को धर्म व तप कैसे हों। ___ सर्व गुण कौन से ? सो कहते हैं कि-सम्यक् दर्शन ज्ञान आदि गुण, उनका मूल विनय ही है। . उक्त च--विणया नाणं, नाणाउ दसणं दसणाउ चरणं तु ।
चरणाहिंतो मुक्खो, मुक्खे सुक्ख अणाबाहं ।। विनय से ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान से दर्शन प्राप्त होता है। दर्शन से चारित्र प्राप्त होता है। चारित्र से मोक्ष प्राप्त होता है और मोक्ष प्राप्त होने से अनन्त अव्याबाध सुख प्राप्त होता है । __उससे क्या होता है सो कहते हैं:-- चकार पुनः शब्द के अर्थ से उपयोग किया है। उसे इस प्रकार जोड़ना कि- वह पुनः गुण मोक्ष का मूल है । कारण कि- सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र, यही मोक्ष का मार्ग है । उस कारण से विनीत पुरुष ही इस धर्माधिकार में प्रशस्त याने विख्यात है । भुवनकुमार के सश।
भुवनतिलककुमार की कथा इस प्रकार है। शुचि पाणिज (पवित्र पानी से उत्पन्न हुआ ) और सुपत्र (सुन्दर पखड़ियों वाला) कुसुम (फूल) समान शुचिवाणिज्य (सुव्यापार वाला) सुपात्र ( श्रेष्ठ लोगों वाला ) कुसुमपुर