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पशुपाल की कथा
वह नगर निगम, ग्राम, आगर, खेड़े, पट्टन तथा समुद्र के किनारों में उस चिंतामणि ही की शोध में मन रखकर दुःख सहता हुआं बहुत समय भटकता किरा।
किन्तु वह कहीं भी उसके न मिलने से उदास होकर विवार करने लगा कि क्या वह है हो नहीं' यह बात सत्य होगी? अथवा 'शास्त्र में जो उसका अस्तित्व बताया है वह असत्य कैसे हो सकता है ?
यह मन में निश्चय करके वह पुनः पूछ २ कर मणियों की अनेक खदाने देखता हुआ खूब फिरने लगा।
फिरते २ उसको एक वृद्ध मनुष्य मिला, उसने उसे कहा कि यहां एक मणीवती नामक मणि की खान है, वहां उत्तम पवित्र उत्तम मणि मिल सकती है।
तब जयदेव निरन्तर वैसी मगियों की शोध करने के लिये वहां जा पहुँचा, इतने में वहां उसे एक अतिशय भूखे पशुपाल निला। __उस पशुपाल के हाथ में जयदेव ने एक गोल पत्थर देखा, तब उसे लेकर उसकी परीक्षा कर देखते उसे चिंतामणि जान पड़ा ।
तब उसने हर्षित हो उसके पास से वह पत्थर मांगा, तो पशुपाल बोला कि, इसका तुझे क्या काम है ? तब उसने कहा कि घर जाकर छोटे बालकों को खिलौने के तौर पर दूगा।
पशुपाल बोला कि ऐसे तो यहां बहुत पड़े हैं, वे क्यों नहीं ले लेता, तब श्रेष्ठ पुत्र बोला कि मुझे मेरे घर जाने की उतावल
___इसलिये हे भद्र ! तू यह पत्थर मुझे दे, कारण कि तुझे तो यहां दूसरा भी मिल जायगा, (इस प्रकार जयदेव के माने पर भी) उस पशुपाल को परोपकार करने को टेव ही न होने से वह उसने उसे नहीं दिया।