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पुण्यहीन पर पशुपाल की कथा
समान यहां बहुत से विघुत्र जन (पंडितों) से युक्त, हरि (इसनाम के राजा) से रक्षित, सैकड़ों अप्सर (पानी के तालाबों) से शोनित हस्तिनापुर नामक उत्तम नगर था. ___ वहां पुरुषों में हाथी समान उतम नागदेव नामक महान सेठ था, उसको निर्मल शीलवान् वसुंधरा नामक स्त्री थी।
उसका विजयवान् आर उसोसे निमल बुद्धि को समृद्धि वाला जयदेव नामक पुत्र था । वह चतुर स्वभाव से चतुर होकर बारह वर्ष तक रन परीक्षा सीखता रहा।
जिस पर कोई हँस न सके ऐसे निमंल, कलंक रहित और मनवांछित पूर्ण करने वाले चिन्तामगि रत्न के सिवाय अन्य रत्नों को वह पत्थर समान मानने लगा।
वह भाग्यशालो पुरुष उघनी होकर चिन्तामगि रत्न के लिये सम्पूर्ण नार में हाट प्रतिहाट ओर घरप्रतिघर थाके बिना फिर गया।
किन्नु वह उस दुर्लभ मणि को न पा सका, तब वह अपने मा बाप को कहने लगा कि मैं इस नगर में चिंतामणि नहीं पा सका तो अब उसके लिये अन्य स्थान को जाता हूँ। ____उन्होंने कहा कि हे पवित्रबुद्धि पुत्र ! चिंतामणि तो केवल कल्पना मात्र ही है, इसलिये जगत में कल्पना के अतिरिक्त अन्य किसी भी स्थान में वह वास्तव में नहीं है।
अतएव अन्यान्य श्रेप रत्नों से ही जैसा तुझे अच्छा जान पड़े वैसा व्यापार कर, कि जिससे तेरा घर निर्मल लक्ष्मी से भरपूर हो जावे।
ऐसा कहकर मा बापों के मना करने पर भी वह चतुर कुमार चिंतामणि प्राप्त करने के लिये दृढ़ निश्चय करके हस्तिनापुर से रवाना हुआ।