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मध्यमबुद्धि की कथा
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दुष्टाशय बन, रात्रि होने पर शत्रुमर्दन राजा के महल में गया । उस समय रानी मदनकदली मंडन शाला में अपने को नाना प्रकार के शृंगारों से विभूषित कर रही थी। वह पापिष्ट बाल दैवयोग से झट ही वासगृह में घुस गया व राजा की शय्या में अहो कैसा स्पर्श है ऐसा बोलता उस पर सो गया।
इतने में राजा को आता हुआ देख बाल भयभीत हो, शय्या के नीचे कूद पड़ा । ज्यों ही यह राजा जान गया त्योंही क्रोधित हो अपने सेवकों को कहने लगा कि-इस नीच मनुष्य को रात्रि भर इसी गृह में सजा दो । तब उसने इसे पकड़ कर वन के कांटेवाले थे ने से बांधा । उस पर तपा हुआ तैल छिड़का तथा उसे चाबुक से ताड़ना की । उसकी अंगुलियों के पेरुओं में लोहे की शलाकाएं पहिनाई। इस प्रकार की विटम्बना पाकर बाल ने सारी रात रोते रोते व्यतीत करी।।
सुबह में कुपित राजा की आज्ञा से उसके रक्षकों ने उसको गेरू व चूने का तिलक कर, माथे पर कलंगी बांध, गले में नीम के पत्तों की माला पहिनाकर के कान कटे हुए गधे पर चढ़ाया। पश्चात् कोई उसे, शिकारी जैसे रीछ को खींचता है वैसे, बाल पकड़ कर खींचने लगा। कोई भूत लगे हुए को भोपा (मांत्रिक) जैसे थप्पड़ लगाता है वैसे, थप्पड़ लगाने लगा। कोई घर में घुसे हुए कुत्त को जैसे मारते हैं वैसे उसे लकड़ी मारने लगा। इस भांति विटंबनापूर्वक सारे शहर में घुमाकर संध्या समय उसे बृक्ष में फांसी पर लटका कर वे रक्षक नगर में आये। . ____ अब दैवयोग से फांसी टूट जाने से बाल भूमि पर गिर पड़ा व थोड़ी देर में उसे सुधि आई तो वह धीरे धीरे आकर घर में छिप रहा । क्योंकि राजा के भय से बाहिर निकलता ही नहीं था।