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वृद्धानुगत्व गुण पर
सकती है ? वृद्धोपदेश जहाज के समान है, उसमें सत्-पन रूप काष्ठ है, वह गुणरूप रस्सी से बंधा हुआ है, व उसी के द्वारा भव्य जन दुस्तर रागसागर को तैरकर पार करते हैं । वृद्ध सेवा से प्राप्त हुआ विवेक रूप वन प्राणियों के मिथ्यात्वादिक पर्वतों को तोड़ने में समर्थ होता है।
सूर्य की प्रभा के समान वृद्ध सेवा से मनुष्यों का अज्ञान रूपी अंधकार क्षणभर में नष्ट हो जाता है। अकेली वृद्ध सेवा रूप स्वाति की वृष्टि प्राणियों के मन रूपी सीपों में पड़कर सद्गुण रूपी मोती उत्पन्न करती है । वृद्ध सेवा में तत्पर रहने वाले पुरुष समस्त विद्याओं में कुशल होते हैं और विनय गुण में बिना परिश्रम कुशलता प्राप्त करते हैं । वृद्ध जनों द्वारा तत्व को समझाया हुआ पुरुष शरीर, आहार, और काम भोगों में भी शीघ्र ही विरक्त हो सकता है।
ज्ञान ध्यानादिक से रहित होते भी जो वृद्धों को पूजता है वह संसार रूपी वन को पार करके महोदय प्राप्त करता है । तीव्र तप करता हुआ तथा अखिल शास्त्रों को पढ़ता हुआ भी जो वृद्धों को अवज्ञा करता है, वह कुछ भी कल्याणे नहीं प्राप्त कर सकता है। जगत् में ऐसा कोई उत्तम धाम नहीं तथा ऐसा कोई अखंड सुख नहीं कि-जो वृद्ध सेवक पुरुष प्राप्त नहीं कर सकता । जिसे पाकर मनुष्यों को स्वप्न में भी दुर्गति नहीं होती, वह वृद्धानुसारिता चिरकाल विजयी रहो।
इस प्रकार मध्यमकुमार के वचन सुन मनीषिकुमार बहुत . प्रसन्न होता हुआ अपने स्थान को आया व मध्यमकुमार भी धर्मपरायण हुआ।
इधर बाल माता व कुमित्र से बारंबार प्रेरित होकर,