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वृद्धानुगत्व गुण पर
इतने में उस नगर के स्वविलास नामक उद्यान में प्रबोधनरति नामक मुनीन्द्र का आगमन हुआ । तब उद्यान पालक के मुख से गुरु का आगमन सुन, हर्षित हो, अपनी माता के साथ हो, मनीषीकुमार ने मध्यम को भी साथ में बुलाया । व मध्यमकुमार ने हठ कर बाल को साथ में लिया । इस भांति तीनों व्यक्ति अत्यन्त कौतुक से भरे हुए उद्यान में गये ।
वहां प्रमोदशेखर नामक जिनेश्वर के चैत्य में युगादि देव की प्रतिमा को मध्यमकुमार व मनीषी ने नमन किया। पश्चात् देव की दक्षिण ओर स्थित उक्त मुनीश्वर को नमन करके, कर्म के मर्म को बतानेवाली शुद्ध धर्म की देशना सुनने लगे । परन्तु बालकुमार माता व कुमित्र के दोष से देहाती की भांति शन्य मन से जरा नम कर भाइयों के समीप बैठ गया ।
इतने में जिनेश्वर के सद् भक्त सुबुद्धि मंत्री की प्रेरणा से राजा मदनकंदली सहित उक्त चैत्य में आया । वह (राजा) जिन व गुरु को नमन करके उपदेश सुनने लगा, व सुबुद्धि मंत्री इस प्रकार जिनेश्वर को स्तुति करने लगा ।
हे देवाधिदेव ! आधिव्याधि की विधुरता के नाश करने वाले, सर्वदा सर्व प्रकार के दारिद्र की मुद्रा को गलाने में समर्थ, अगणित पवित्र कारुण्य रूप पण्य के आपण (बाजार ) समान, बृषभध्वजधारी, संदेह रूपी पर्वत को तोड़ने में वज्र समान । तीव्र कषाय रूप संताप का शमन करने के लिये अमृत समान, संसार रूप वन को जलाने के लिये दावानल समान पवित्रात्मा आप की जय हो ।
हे सर्वदा सदागम रूप कमल को विकसित करने के हेतु सूर्य समान ! आपको नमन करने से भव्य प्राणी संसार में गिरने से