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मध्यमबुद्धि की कथा
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हुआ सब के आगे खड़ा हुआ । तत्पश्चात् उनके शरीर में से एक कुछ काले वर्ण वाला बालक निकला, तथा उसके अनन्तर तीसरा अतिशय काले वर्ण वाला बालक निकला। वह तीसरा बालक अपना शरीर बढ़ाने लगा। इतने में श्वत बालक ने उसे धप्पा मार कर रोक दिया पश्चात् वे दोनों काले बालक गुरु की पर्षदा में से चले गये।
गुरु बोले कि- हे भद्रो! इस विषय में तुम्हारा कुछ भी दोष नहीं किन्तु इन अज्ञान व पाप नामके दोनों काले बालकों का दोष है । वह इस प्रकार कि, तुम्हारे शरीर में से जो पहिले यह अज्ञान निकला, वही समस्त दोषों का कारण है। यह जब तक शरीर में रहता है तब तक प्राणी कार्याकार्य को नहीं जान सकते । वैसे ही गम्यागम्य भी नहीं जानते । जिससे वे जीव दुःखदायक पाप की वृद्धि करते हैं । सब के प्रथम जो श्वेत बालक निकला था वह आजेव गुण है।
अज्ञान से तुम्हारा पाप बढ़ रहा था, उसे इसने रोक दिया. और तुम्हें मैंने बचाया है ऐसा भी इसीने कहा था । अतः जिनके चित्त में आर्जव रहता है । उनको भाग्यशाली ही मानना चाहिये । वे अज्ञान से पापाचरण करते हैं तथापि उनको बहुत थोड़ा पाप लगता है। इसलिये तुम्हारे समान भद्र जनों को अब अज्ञान व पाप को दूर करके सम्यक् धर्म सेवन करना चाहिये। ___पंडितों ने मुक्ति प्राप्त करने के लिये इस संसार में विशुद्ध ही को सदैव ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि अन्य सर्व दुःख का कारण है । प्रिय संयोग अनित्य व ईर्ष्या व शोकादिक से भरपूर है तथा यौवन भी कुत्सित आचरणास्पद व अनित्य है।