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वृद्धानुगत्व गुण पर
इतने में उनके शरीर में से निकलते हुए काले, लाल परमाणुओं से बनी हुई भयंकर आकृतिवाली एक स्त्री निकली । वह भगवान का तेज न सह सकने से पर्षदा के बाहर पराङमुख हो, खिन्न होकर खड़ी रही । अब देव अपनी स्त्री सहित उठकर बोला कि - हे भगवन् ! मैं इस महा पाप से किस प्रकार मुक्त होउ ? तब मुनीश्वर बोले:
हे देव ! यह तुम्हारा दोष नहीं, परन्तु यह सब एक पापिनी स्त्री का दोष है । तब उन्होंने पूछा कि वह कौन है ? गुरु ने अमृतमय वाणी से कहा- हे भद्र ! वह विषयतृष्णा है । उसे देवता भी नहीं जीत सकते हैं। वह सर्व दोष रूप अंधकार को विस्तारने में रात्रि समान है। तुम तो स्वरूप में निर्मल स्फटिक के समान हो किन्तु यह स्त्री ही सर्व दोषों के कारण रूप में स्थित है । वह यहां रह सकने में असमर्थ होने से अभी दूर जा खड़ी है व यह वाट देख रही है कि तुम मेरे पास से कब रवाना होओगे ।
वे बोले कि हे भगवान् ! उससे हमारा कब छुटकारा होगा ? गुरु बोले कि - इस भव में तो नहीं भवान्तर में होगा परन्तु सम्यक्त्व के प्रभाव से वह अब तुमको सता न सकेगी । यह सुनकर उन्होंने मोक्ष सुख का देनेवाला सम्यक्त्व अंगीकृत किया ।
अब ऋजु राजा प्रगुणा रानी मुग्धकुमार तथा अकुटिला पुत्र वधू इन चारों ने गुरु को अपनी अपनी विटम्बना कही ।
इसी समय उनके अंग में से निकले हुए श्व ेत परमाणु से बना हुआ एक निष्कपटी बालक प्रकट हुआ वह बोला कि - मैं ने तुमको बचाया है । यह कहकर वह गुरु के मुख को देखता