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मध्यमबुद्धि की कथा
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उस समय यहां से निकल कर मैं बाहर के देशों में बहुत भटका, किन्तु मुझे इस बात का लेशमात्र भी पता नहीं मिला। तब मैं अन्दर के देशों में आया । वहाँ मैंने राजसचित्त नामक चारों ओर से अंधकार पूर्ण भयंकर नगर देखा। ___उस नगर में प्रवेश करके मैं ज्यों ही राजसभा के समीप पहुँचा त्यों ही मैंने वहां एकाएक कोलाहल होता सुना। वहां लौल्यादिक राजाओं के मिथ्याभिमानादिक रथ अपनी उछलती घरघराहट से ब्रह्मांड को भर देते थे। ममत्वादिक हाथी गर्ज कर मेघ को भी नीचा दिखाते थे। वैसे ही अज्ञानादिक घोड़े हिनहिनाहट से दिशाओं को भर डालते थे । व चापल आदि पदाती अनेक युद्ध करने से दृढ़, साहसिक बने हुए अनेक जाति के शत्र ग्रहण करके चले जा रहे थे। इसके अतिरिक्त अन्य भी समस्त सैन्य प्रसर्प-दर्प कंदर्प का नगारा बजने से शीघ्रातिशीघ्र सजधज कर चलने लगा। तब मैं ने विषयाभिलाष ही के विपाक नामक मनुष्य को इस प्रस्थान का कारण पूछा तो वह कहने लगा।
इस लुटारू सैन्य का मुख्य सरदार रागकेशरी नामक राजा है। वह शत्रुओं के हाथीयों के कुभस्थल विदीर्ण करने में सिंह समान है। उसका विषयाभिलाष नामक प्रख्यात मंत्री है। वह प्रचंड सूर्य के समान प्रौढ़ प्रताप से अखिल जगत् को वश में करने वाला है। उक्त मंत्रीश्वर को एक समय रागकेशरी कहने लगा कि हे बुद्धिमान् ! तू मुझे यह जगत् वश में कर दे । तब मंत्री ने उक्त बात स्वीकार कर जगत को वश में करने के लिये अपने स्पर्शनादिक पांच मनुष्यों को बुलाकर आदेश कर दिया ।
पश्चात् कुछ समय के अनन्तर मंत्री ने राजा को कहा किहे देव ! आपकी आज्ञानुसार मैं ने अपने मनुष्यों को जगत् को