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वृद्धानुगत्व गुण पर
वश में करने के लिये भेज दिया है । उन्होंने प्रायः समस्त विश्व जीत कर आपके आधीन कर दिया है । तथापि ऐसा सुनने में आता है कि- पके हुए धान्य को जैसे टिड्डीदल बिगाड़ देता है। वैसे अपने जीते हुए लोगों को उपद्रव करने वाला महा. पराक्रमी संतोष नामक डाकू कूट कपट में कुशल हो बारंबार कितने ही जनों को पकड़ कर आपकी भुक्त भूमी से बाहिर स्थित निर्वृति पुरी में पहुचाया करता है। ___मंत्री का यह वचन सुन कर राजा कोपवश आरक्तनेत्र हो उससे लड़ने के लिये स्वयं रवाना हुआ था । इतने में उसे पिता के चरणों को अभिवन्दन करने की बात स्मरण हुई। जिससे वह तुरन्त ही समुद्र की तरंग की भांति वापस फिरा है । तब मैं भय से इधर उधर दृष्टि फेरता हुआ विपाक को पछने लगा कि, इस राजा का पिता कौन है ? सो मुझे कह ।
वह किंचित् हँसकर बोला कि क्या इतना भी तुझे ज्ञात नहीं ? अरे ! वह तो त्रैलोक्य विख्यात महिमावान् मोह नामक महा नरेन्द्र है।
वृद्ध होने से उसने विचार किया कि मैं एक ओर रह कर भी अपने बल से जगत् को वश में रख सकूगा इससे अब मेरे पुत्र को राज्य सौप । जिससे इस रागकेशरी को राज्य देकर वह निश्चित होकर सोया है, तो भी उसी के प्रभाव से यह जगत् वश में रहता है । इसलिये मोहराजा की पूछताछ करने की तुझे क्या आवश्यकता है ? इस प्रकार वह बोला, तब मैंने उसे इस प्रकार मिष्ट वचन कहा कि-हे भद्र ! मैं निर्बुद्धि हूँ, अतएव तू ने मुझे उचित प्रबोधित किया परन्तु अब आगे क्या बात है सो कह । वह बोला रागकेशरी ने सपरिवार पिता के समीप जाकर उनके चरण में नमन किया और उन्हें सर्व वृत्तान्त सुनाया।