________________
१९२
वृद्धानुगत्व गुण पर
भवजन्तु की क्षण भर में हुई रक्त-विरक्तता देखो! उसके हृदय की कठोरता देखो! और उसकी महामूर्खता देखो! तथापि हे धीर ! तू धीरज धर, शोक त्याग कर, स्वस्थ हो और प्रसन्नता पूर्वक मेरा मित्र हो।
स्पर्शन बोला-बहुत अच्छा, तुम्हीं मेरे भवजन्तु के समान हो। तब बाल मन में प्रसन्न होकर उसके साथ मित्रता करने लगा। मनीषी कुमार विचार करने लगा कि- सदागम से त्याज्य होने से निश्चय यह स्पर्शन बुरे आशयवाला होना चाहिये। इससे उसने बाहर ही से उसके साथ मित्रता दर्शाई। .
उन दोनों ने यह वृत्तान्त माता पिता को कह सुनाया तब राजा बहुत हर्षित हुआ । अकुशला माता हर्षित होकर बोली कि- हे पुत्र ! तूने बहुत ही अच्छा किया, कि जो इस सर्व सुख की खानि समान स्पर्शन को मित्र किया।
शुभसुदरी विचार करने लगी कि-पद्म को जैसे हिम जलाता है, चन्द्रमा को जैसे राहु ग्रसता है वैसे ही वह स्पर्शन भी मित्र होने से मेरे पति के सुख का कारण नहीं है । ऐसा सोचकर दुःखी होने लगी, परन्तु गांभीर्य धारण कर उसने पुत्र को कुछ भी नहीं कहा। ____अब एक समय स्पर्शन को मूल शुद्धि प्राप्त करने के लिये मनीषी ने बोध नामक अंगरक्षक को एकान्त में बुलाकर कहा कि- हे भद्र ! इस स्पर्शन की मूल शुद्धि का पता लगाकर मुझे शीघ्र बता । तब स्वामी की आज्ञा स्वीकार कर बोध वहां से रवाना हुआ। उसने अपने प्रभाव नामक प्रतिनिधि को इस कार्य के लिये भेजा । वह कितनेक दिनों में वापस आ बोध के पास जा उसे प्रणाम करने लगा, तो बोध ने उसे आदर पूर्वक पूछा कि-हे प्रभाव ! तेरा वृत्तांत कह तब वह बोला: