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धनश्रेष्ठी की कथा
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है याने प्रतिज्ञा करता है - दीर्घ याने परिणाम में सुन्दर 'काम' इतना ऊपर से लेना अथवा दीर्घ शब्द क्रिया विशेषण के साथ जोड़ना अर्थात् दीर्घ देखने की जिसको देव हो वह दीर्घदर्शी पुरुष है, वैसा पुरुष । सकल याने सर्व - परिणाम सुन्दर याने भविष्य में सुख देनेवाला कार्य याने काम तथा अधिक लाभवाला याने बहुत ही फायदेमन्द और अल्प क्लेश याने थोड़े परिश्रमवालावैसे हो बहुजनों को याने स्वजन परिजनों को अर्थात् सभ्यजनों को श्लाघनोय याने प्रशंसा करने योग्य (जो काम हो वही काम वैसा पुरुष करता है) कारण कि वैसा पुरुष इस लोक सम्बन्धी कार्य भी पारिणामि की बुद्धि द्वारा सुन्दर परिणाम वाला जानकर ही करता है । धनश्रेष्ठ के समान - अतएव वही धर्म का अधिकारी माना जाता है।
धनश्रेष्ठी की कथा इस प्रकार है। यहां अनेक कुतूहल युक्त मगध देश में जगत् लक्ष्मी के क्रीड़ा गृह समान राजगृह नामक विशाल नगर था। वहां बहुत से मणि रत्नों का संग्रहकर्ता, बुद्धिशाली धन नामक श्रेष्ठी था । उसकी बहुत कल्याणकारी भद्रा नामकी स्त्री थी। उनके ब्रह्मा के चार मुख समान, धनपाल-धनदेव-धनद और धनरक्षित नामक चारं श्रेष्ठ पुत्र थे । उनकी क्रमशः श्री-लक्ष्मी-धना और धन्या नामकी अनुपम रूपवती चार भार्याए थी, वे सुखपूर्वक रहती थीं। ___ अब श्रेष्ठी अवस्थावान् होने से व्रत लेने की इच्छा करता हुआ विचारने लगा कि अभी तक तो मेरे इन पुत्रों को मैंने सुखी रखा है। परन्तु अब जो कोई सारे कुटुम्ब का भार यथोचित रीति से उठा ले तो बाद में भी ये अत्यंत सुखी रह कर समय व्यतीत करेंगे । इन चारों बहूओं में से घर की