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सुदीर्घदर्शीत्वगुण पर
सम्हाल करने योग्य कौन सी बहू है ? हां समझा ! जो पुण्यवाली होगी वह, वैसी कौन है सो उसकी बुद्धि पर से जान पड़ेगी क्योंकि बुद्धि पुण्य के अनुसार होती है। इसलिये इनकी मित्र, स्वजन और भाई बंधुओं के समक्ष परीक्षा लेनी चाहिये । क्योंकि कुटुम्ब की सुव्यवस्था करने ही से कौटुम्बिकों की कीर्ति होती है ।
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यह सोचकर उसने अपने घर में विशाल मंडप बंधवाकर भोजन के निमित्त अपने मित्र, ज्ञातिवर्ग को निमन्त्रित किया । उनको भोजन करा पान फूल देकर उनके समक्ष श्रेष्ठी ने बहूओं को बुलाया। उसने प्रत्येक बहू को पांच पांच चांवल के दाने देकर कहा । इन दानों को सम्हाल कर रखना और जब मांगू तब मुझे देना | बहूओं के उक्त बात स्वीकार करने पर श्रेष्ठी ने सम्मान पूर्वक अपने सगे संबंधियों को विदा किये । वे सब इस बात का तत्व विचारते हुए अपने अपने स्थान को गये । इधर प्रथम बहू ने विचार किया कि सुरजी मांगेंगे तब हर कहीं से भी ऐसे दाने लेकर दे दूरंगो, यह सोचकर उसने उन्हें फेंक दिया। दूसरी बहू ने उन्हें छोलकर खा लिया। तीसरा ने विचार किया कि वपुरजी के दिये हुए हैं अतः आदर पूर्वेक उज्वल वस्त्र में बांध अपने आभूषण को टिपारी में रख नित्य तोनवक्त सम्हाल कर यत्न से रखे । चौथी धन्या नामक बहू ने अपने पितृगृह (पीहर ) से एक सम्बन्धी को बुलाकर कहा कि- प्रतिवर्ष ये दाने बोकर बढ़ते रहें ऐसी युक्ति करना ।
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उसने वर्षाऋतु आने पर परिश्रम कर उन दानों को पानी से भरी हुई छोटी सी क्यारी में बोये व वे ऊग गये। तब उन सब को पुनः उखेड़ कर रोपण किये । इस प्रकार क्रमशः प्रथम वर्ष