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सुपक्षत्व गुण पर
लूगा । भगवान ने कहा कि- प्रतिबंध मत करो । तब वह माता पिता के सन्मुख आ, नमन कर, हाथ जोड़कर कहने लगा कि- हे माता पिता ! आज मैंने वीर प्रभु से रम्य धर्म सुना हैं। और श्रद्धा हुई है प्रतीत हुआ है और मुझको इच्छित है।
__तब वे भी अनुकूल हृदय होने से कहने लगे कि हे वत्स ! तूधन्य और कृतपुण्य है । इस प्रकार दो तीन बार कहने पर कुमार बोला। आप आज्ञा दें तो अब मैं दीक्षा ग्रहण करू। यह अनिष्ट वचन सुन उसकी माता मूर्छित हो गई। उसे सावधान करने पर वह करुण विलाप करती हुई इस प्रकार दीन वचन बोलने लगी कि-हे पुत्र ! मैं ने हजारों आयों से तेरा प्रसव किया है। तो अब मुझे अनाथ छोड़कर हे पुत्र ! तू कैसे श्रमणत्व लेगा । तब तो शोक से मेरा हृदय भरकर मेरा जीव भी निकल जायगा । इसलिये जब तक हम जीवित हैं वहां तक तू रह । पश्चात् तेरी संतान बड़ी होने पर व हमारे कालगत हो जाने पर व्रत लेना।
कुमार बोला :- मनुष्य का जीवन सैकड़ों कष्टों से भरा हुआ है, और वह बिजली के समान चंचल तथा स्वप्न सदृश है तथा आगे पीछे भी मरना तो निश्चित है। इस लिये कौन जानता है कि किस को यह अत्यंत दुर्लभ बोधि प्राप्त होगा कि नहीं? इसलिये धैर्य धरकर हे माता ! मुझे आज्ञा दें।
माता पिता बोले-हे पुत्र ! तेरा यह अंग अनुपम लावण्य और रूप से सुशोभित है । अतएव उसको शोभा भोगकर वृद्ध होने पर दीक्षा लेना।