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भद्रनंदीकुमार की कथा
. तात्पर्य यह है कि:-अनुकूल परिवार धर्मकार्य में उत्साह पर्धक व सहायक रहता है । धमेशोल परिवार धर्मकार्य में लगाने पर अपने पर दबाव डाला गया ऐसा नहीं मानकर अनुग्रह हुआ मानते हैं। सुसमाचार परिवार राज्यविरुद्ध आदि अकार्य परिहारी होने से धर्मलघुता का हेतु नहीं होता । इसलिये ऐसे प्रकार का सुपक्ष वाला पुरुष ही धर्माधिकारी हो सकता है।
भद्रनंदी कुमार की कथा इस प्रकार है।
हाथी के मुख समान सुरत्नों से सुशोभित ऋषभपुर नामक नगर था । उसके ईशान्य कोण में स्तूप करंड नामक उद्यान था । उस उद्यान में सर्व ऋतुओं में फलने वाले अनेक वृक्ष थे। वहां पूर्णनाग नामक परिकर धारी यक्ष का बहु जनमान्य चैत्य था।
उस नगर को, मालती लता को जैसे माली पालन करता है वैसे प्रवर गुणशाली धनावह नामक.नृपति हलके कर द्वारा पालन करता था। उसके हजार रानियां थी। उनमें सबसे श्रेष्ठ अखंडित शील पालन करने वाली और मधुर भाषिणी सरस्वती नामक रानी थी। उसने किसी समय रात्रि को स्वप्न में अपने मुख में सिंह घुसता हुआ देखा । तदनन्तर जागकर राजा के समीप जा उसने सम्यक् प्रकार से उक्त स्वप्न कह सुनाया। राजा ने कहा कि-तेरे राज्य भार उठाने वाला पुत्र होगा । तब 'तथास्तु' कह कर वह रतिभवन में आ शेष रात्रि व्यतीत करने लगी। - प्रातःकाल होते ही हर्षित हो नहा धोकर अलंकार धारण कर सिंहासनारूढ़ हो राजा ने स्वप्न शाख के ज्ञाताओं को बुलाया।