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सुपक्षत्व गुण पर
तब वे भी शीघ्र नहा धो कौतुक मंगल कर वहां आ राजा को जयविजय शब्द से बधाई देकर सुख से बैठे । पश्चात् राजा, रानी को परदे में भद्रासन पर बिठा फूल फल हाथ में धर उनको उक्त स्वप्न कहने लगा।
वे शास्त्र विचार कर राजा से कहने लगे कि, शास्त्र में बयालीस जाति के स्वप्न और तीस जाति के महा स्वप्न कहे हुए हैं। जिनेश्वर और चक्रवर्ती को माताएं हाथो आदि चौदह स्वप्न देखती हैं। वासुदेव की माता सात देखती है । बलदेव को माता चार देखती है और मांडलिक राजा की माता एक देखती है। रानी ने स्वप्न में सिंह देखा है। जिससे पुत्र होगा
और वह समय पाकर या तो राज्यपति राजा होगा अथवा मुनि होगा।
राजा ने उनको बहुत सा प्रोतिदान देकर विदा किया । पश्चात् रानी उत्तम दोहदा पूर्ण करती हुई गर्भ वहन करने लगी । उसने समय पर पूर्व दिशा जैसे सूर्य को प्रकट करती है वैसे ही कान्तिवान् पुत्र का प्रसव किया । तब राजा ने बड़ी धूमधाम से उसकी बधाई कराई । वह भद्रकारी और नंदीकारी होने से उसका नाम भद्रनंदी रखा गया । वह पर्वत की गुफा में उगे हुए वृक्ष के समान पांच धात्रियों के हाथ में रहकर बढ़ने लगा ।
समयानुसार वह सर्व कलाओं में कुशल हुआ और उसका तमाम परिजन उसके अनुकूल रहने लगा । इस प्रकार वह परिपूर्ण और पवित्र लावण्य रूप जल के सागर समान यौवन वय को प्राप्त हुआ। तब राजा ने उसके लिये पांच सौ महल बांधकर उसका श्री देवी आदि पांच सौ राजपुत्रियों से विवाह किया। उनके साथ बह किसी भी प्रकार की बाधा बिना दिव्य