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सुपक्षत्व गुण पर
तिथंच के बहुत से भव कर अनन्त काल निगोद में भटक कर क्रमशः मनुष्य भव पाकर उक्त रोहिणी मोक्ष को पहुँची ।
अब उक्त सुभद्र सेठ अपनी पुत्री को विटम्बना देखकर महा वैराग्य पा दीक्षा ले, पाप का शमन कर तप, चारित्र, स्वाध्याय तथा सत्कथा में प्रवृत्त रह, प्रमाद को दूर कर, विकथाओं से विरक्त रह क्रमशः सुख भाजन हुआ।
इस प्रकार जो प्राणी विकथा में लगे रहते हैं, उनको होने वाले अनेक दुःख जानकर भव्य जनों ने वैराग्यादिक परिपूर्ण व निर्दोष सत्कथा ही सदैव पढ़ना ( करना ) चाहिये ।
इस प्रकार रोहिणी का दृष्ट्वान्त पूर्ण हुआ। अणुकूल धम्मसीलो-सुममायारो य परियणो जस्स । एस सुपक्खो धम्म-नरंतरायं तरइ काउं॥२१॥
मृल का अर्थ-जिसका परिवार अनुकूल और धर्मशील होकर सदाचार युक्त होता है, वह पुरुष सुपक्ष कहलाता है। वह पुरुष निर्विघ्नता से धर्म कर सकता है। ___टीका का अर्थ- यहां पक्ष, परिवार व परिकर ये शब्द एक ही अर्थ वाले हैं। जिससे शोभन पक्ष याने परिवार जिसका हो वह सुपक्ष कहलाता है । वही बात विशेषता से कहते हैं:
अनुकूल याने धर्म में विघ्न न करने वाला-धर्मशील याने धार्मिक, और सुसमाचार याने सदाचार परायण-परिजन याने परिवार हो जिसका वह सुपक्ष कहलाता है । ऐसा सुपक्षवाला पुरुष धर्म को निरंतरायपन से याने निर्विघ्नता से करने को याने अनुष्ठित करने को समर्थ होता है, भद्रनंदी कुमार के समान ।