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गुणरागित्व गुण पर
की वेदना पाकर अति दुःखित होने लगे । कितनेक अव्यक्त स्वर से रोते हुए स्फुट वचन बोलने में असमर्थ हो गये । कितनेक कभी हिलते-कभी गिर पड़ते, कभी मूर्छित होते, कभी सो जाते, कभी जागते और कभी फिर विष चढ़ने से ऊंघते कितनेक सदैव भरनिद्रा में पड़े रहकर बेभान हो जाते थे। ___इस प्रकार उस संपूर्ण नगर के विष वेदना से पीड़ित हो जाने पर वहां एक महानुभाग विनीत शिष्यों के परिवार सहित गारुडिक आ पहुचा । उसने नगर के यह हाल देखकर करुणा लाकर लोगों से कहा कि. - हे लोगों ! तुम जो मेरे कथन के अनुसार क्रिया करो तो मैं तुम सब को इस विष वेदना से मुक्त करदू।
लोग बोले कि- वह कैसी क्रिया है ?
गारुडिक बोला:-प्रथम तो तुम मेरे इन शिष्यों के समान वेष धारण करो। पश्चात् अखिल जगत् के प्राणियों को रक्षा करना । छोटे से छोटा भी असत्य न बोलना । अदत्त दान नहीं लेना । नवगुप्ति सहित निष्कपट ब्रह्मचर्य पालन करना। अपने शरीर पर ममता न रखना । रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करना । स्त्री पशु पंडक रहित स्मशान गिरिगफा तथा शन्य घर अथवा वन में वास करना। भूमि वा काष्ट की शय्या पर सोना । युग मात्र दृष्टि रखकर भ्रमण करना । हितमित अगर्हित निर्दोष वचन बोलना । अकृत, अकारित, अननुमत, असंकल्पित
आहार लेना । किसी का बुरा नहीं विचारना । राजकथादिक विकथाओं से दूर रहना । कुसंग से दूर रहना। कुगुरु से संबंध न रखना । यथाशक्ति तपश्चरण करना । अनियतता से विहार करना । परीह और उपसगों को सम्यक् प्रकार से सहन करना। पृथ्वी के समान सब सहन करना । अधिक क्या कहूँ-इस क्रिया