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दयालुत्व गुण पर
कहता है वह सत्य है, परन्तु ईस ईशान राजा की रंक (अभागी) पुत्री का क्या हाल होगा। ___कुमार बोला कि- इसको भी यह व्यतिक्रम सुनाया जाय । कारण कि- सम्यक् रीति से यह बात सुनने से कदाचित् यह भी जिनधर्म का बोध पा जाय।
इस बात को योग्य मानकर राजा ने अपने शंखवर्धन नामक पुरोहित से कहा कि- तू कुमारी के पास जाकर यह सब विषय कह आ। तब पुरोहित वहां जाकर व क्षणभर में वापस आकर राजा को कहने लगा कि- कुमार के मनोरथ सिद्ध हुए है। राजा ने पूछा कि- किस प्रकार ? तब वह बोला-हे देव ! मैं यहां से वहां जाकर कुमारी को कहने लगा कि- हे भद्रे ! क्षण भर एक चित्त रखकर राजा का आदेश सुन ।
तब वह साड़ी से मुख ढ़ांक, आसन छोड़कर हाथ जोडती हुई बोली कि- प्रसन्नता से कहिये, तदनुसार मैंने उसे इस भांति कहा। ___ यहां आते हुए कुमार को साधु के दर्शन के योग से आज इसी समय जाति-स्मरण ज्ञान होकर उसे अपने नव भव स्मरण आये हैं।
वे इस प्रकार हैं कि- (प्रथम भव में) विशाला नगरी में वह यशोधरा का सुरेन्द्रदत्त नामक पुत्र था । इतना मैं बोला ही था, कि झट वह मूर्छित हो गई । क्षण भर में वह सुधि में आई. तब मैंने पूछा कि- यह क्या हुआ ? तो वह बोलों कि-हे भद्र ! मैं ही स्वयं वह यशोधरा हूँ । पश्चात् कुमार के समान उसने भी सब बाते कहकर कहा कि- मुझे विवाह नहीं करना । कुमार को जो करना हो सो करे।