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यशोधर की कथा
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___यह सुनकर मैं यहां आया हूँ । पुरोहित के इस प्रकार कहने पर राजा ने अपने मनोरथ नाम के छोटे पुत्र को राज्य पर स्थापित किया।
पश्चात् राजा ने कुमार, यशोधरा, सामंत, मंत्री तथा रानियों के साथ श्री इन्द्रभूति गणधर से दीक्षा ग्रहण को।
अब उक्त यशोधर मुनि षट काय के जीवों की रक्षा करने में उद्यत हो महान् तप रूप अग्नि से पापरूप तरु को जलाने लगे।
गुरु के चरण में रहकर उन्होंने शुद्ध सिद्धान्त के सार का ज्ञान प्राप्त किया और सर्व आश्रवद्वार बन्द करके उत्कृष्ट चारित्र से पवित्र रहने लगे । पश्चात् आचार्य पद पाकर वे प्रद्वष रहित हो हितोपदेश देकर भव्यजनों को तारते हुए केवलज्ञान को प्राप्त
इस प्रकार कर्म की आठ मूल प्रकृति और एकसो अट्ठावन उत्तर प्रकृति का क्षय करके दुःख दूर कर उन्होंने अजरामर स्थान पाया।
विनयवती भी अपने पितादिक को अपना संपूर्ण चरित्र कह कर प्रव्रजित होकर के सुगति को गई।
इस प्रकार यशोधर को प्राणी हिंसा के संकल्प मात्र से कैसी दुःख परंपरा प्राप्त हुई । वह सुन कर हे भव्यों ! तुम नित्य दुःख को ध्वंस करने वाली, संसार समुद्र से तारने वाली, सद्धर्म रूपी वस्त्र को बुननेवाली, समस्त भय को नाश करने वाली और अक्षय जीवदया का पालन किया करो।
. इस प्रकार यशोधर का चरित्र पूर्ण हुआ.