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यशोधर की कथा
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इस प्रकार जाति-स्मरण होने तक उसका वह वृत्तांत सुनकर राजा आदि मनुष्य बोले कि-हाय-हाय ! जीव वध का संकल्प मात्र भी कितना भयानक है ?
पश्चात् हाथ जोड़कर कुमार कहने लगा कि- हे तात ! मुझ पर कृपा करो और मुझे चारित्र लेने की आज्ञा दो, कि जिससे मैं भव समुद्र पार करू।
तब पुत्र पर अति स्नेह से मुग्ध मति राजा कुमार को आज्ञा देने में हिचकिचाने लगा. तो कुमार मधुर स्वर से नीचे लिखे अनुसार विनंती करने लगा। __यह संसार दुःख का हेतु, दुःख के फल वाला व दुस्सह दुःख रूप ही है, तो भी स्नेह रूप निगड़ से बंधे हुए जीव उसे छोड़ नहीं सकते । जैसे हाथी कादव में फंसा रहने से किनारे की भूमी पर नहीं चढ़ सकता, वैसे ही स्नेहरूप कादव में फंसा हुआ जोव धर्मरूप भूमि पर नहीं चढ़ सकता।
जिस प्रकार तिल स्नेह ( तैल) के कारण इस जगत् में काटे जाते हैं। सुखाये जाते हैं । मरोड़े जाते हैं । बांधे जाते हैं और पीले जाते हैं, वैसे ही जीव भी स्नेह (प्रेम) के कारण ही दुःख पाते हैं।
स्नेह में बंधे हुए जीव मर्यादा छोड़कर धर्म विरुद्ध तथा कुल विरुद्ध अकार्य करते रुकते नहीं जहां तक जीवों के मन में थोड़ा सा भी स्नेह रहता है वहां तक उनको निवृत्ति (शांति) कैसे प्राप्त हो ? देखो, दीपक भी तभी निर्वाण पाता है जबकि उसमें स्नेह (तैल) पूरा हो जाता है।
ऐसा सुन राजा बोला कि- हे स्वच्छ बुद्धि शाली वत्स ! तू