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दयालुत्व गुण पर
पश्चात् वह हाथी पर चढ़कर चामरों से विजाता हुआ, मस्तक पर धवल छत्र धारण करके चलने लगा और मागध (भाट, चारण) उसकी स्तुति करने लगे।
उसके पीछे हाथी पर चढ़कर राजा आदि भी चले और प्रत्येक दिशा में रथ व घोड़ों के समूह चलने लगे।
इतने में कुमार की दक्षिण चक्षु स्फुरित हुई व उसने कल्याण सिद्धि भवन में एक कल्याण मय आकृति वाले मुनि को देखा। जिन्हें देखकर कुमार सोचने लगा कि- यह रूप मेरा पूर्व देखा हुआ सा जान पड़ता है। इस प्रकार संकल्प-विकल्प करते वह हाथी के कंधे पर मूर्छित हो गया। उसके समीप बैठे हुए रामभद्र नामक मित्र ने उसे गिरते-गिरते पकड़ लिया। इतने में " क्या हुआ - क्या हुआ ?" इस प्रकार कहते हुए राजा आदि भी वहां आ पहुँचे।
पश्चात् उसके शरीर पर चन्दन मिश्रित जल व पवन डालने से वह सुधि में आया और उसे जाति-स्मरण ज्ञान प्राप्त हुआ । राजा ने पूछा कि- हे वत्स ! यह कैसे हुआ ?
कुमार बोला- हे तात ! यह सब अति - गंभीर संसार का विलसित है।
राजा बोला- हे वत्स ! इस समय तुझे संसार के विलसित की चिंता करने की क्या आवश्यकता है ? ___कुमार बोला- हे तात ! यह बहुत ही बड़ी बात है. इसलिये किसी योग्य स्थान पर बैठिये ताकि मैं अपना सम्पूर्ण चरित्र कह सुनाऊँ। ___ राजा के वैसा ही करने पर कुमार ने सुरेन्द्रदत्त के भव से लेकर पिष्टमय मुर्गे के वध से जो-जो क्लेश हुए उनका वर्णन किया।