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यशोधर की कथा
राजा हृष्ट तुष्ट होकर नगर में नीचे लिखे अनुसार वृद्धि कराने लगा।
झट कैदी छोड़े गये, महा दान दिये जाने लगे, बाजार सजाये गये, पौरलोक में नाच होने लगे, बहुत से लोग अक्षत लेकर राजमहल में बधाई देने आये, कुलं वधूएँ गीत गाने लगी, भाटचारण आशिर्वाद बोलने लगे, स्थान-स्थान पर नाटक होने लगे, घर-घर तोरण बांधे गये, गली-कूचों के मुख साफ किये गये, केले के स्तंभ (धुसल) व मुसल खड़े किये गये, स्वर्ण कलश स्थापित किये गये, इस प्रकार राजा ने दस दिवस पयंत नगर में जन्मोत्सव कराकर अत्यन्त हर्षित हो कुमार का अति मनोहर यशोधर नाम रखा।
वह कुमार नवीन चन्द्र जिस प्रकार प्रति दिवस कलाओं से बढ़ता है उस प्रकार नई-नई कलाओं से बढ़ता हुआ यौवन प्राप्त कर अपने यश से समस्त दिशाओं को धवल (उज्ज्वल) करने लगा।
अब कुसुमपुर नगर में ईशान (महादेव) के समान त्रिशक्तियुक्त ईशानसेन नामक राजा था । उसकी विजया नामक देवी (स्त्री) थी। उसके उदर में अभयमति का जीव स्वर्ग से च्यव कर पुत्री रूप उत्पन्न हुआ। उसका नाम विनयवती रखा गया। __ वह जब यौवनावस्था को पहुंची तब उसने अपनी इच्छा से यशोधर को वर लिया। जिससे राजा ने बहुत-सी सेना के साथ उसे यशोधर से विवाह करने को भजा। ___ वह विनयधर राजा के मान्य नगर के बाहर के उद्यान में आकर ठहरी । अब विवाह का दिन आ गया । तब लक्ष्मीवती आदि ने मिलकर कुमार को मणि, रत्न व सुवर्ण के कलशों से स्नान करा, विलेपन कर, वस्त्र व आभूषणों से अलंकृत किया ।