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________________ यशोधर की कथा ११७ रूप में और दूसरा ( यशोधरा का जीव) पुत्री के रूप में उत्पन्न हुए । उस गर्भ के अनुभाव से रानो हिंसा के परिणाम से रहित हो गई। जिन-प्रवचन सुनने को इच्छुक होने लगी व अभयदान की रुचि धारण करने लगी। ___ उसे ऐसा दोहद हुआ कि " समस्त जीवों को अभय दिलाना," तदनुसार राजाने नगर में अभारिपडह बजवाकर उसे पूर्ण किया । कालक्रम से रानी ने युगलिनी के समान उक्त जोड़ा प्रसव किया, तब राजा ने नगर में भारी बधाई कराई । और बारहवें दिन कुमार का अभय और कुमारी का अभयमती नाम रखा गया । वे दोनों सुख पूर्वक बढ़ने लगे। वे भलीभांति कलाएं सीखकर क्रमशः उत्तम यौवनावस्था को प्राप्त हुए । तब अति हर्षित हो राजा ने इस प्रकार विचार किया। सामंतादिक के समक्ष कुमार को युवराज पद पर स्थापित करना और रूप से देवांगनाओं को जीतने वाली इस कुमारी का विवाह कर देना। ____ यह सोचकर वह शिकार करने के लिये मनोहर आराम (उपवन) में गया । वहां उसे सुगंधित पवन आने से वह चारों ओर देखने लगा। इतने में वहां तिलकवृक्ष के नीचे मेरु गिरि के समान निष्कम्प और नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि रखने वाले सुदत्त मुनि को देखे । तब राजा ने 'हाय ! यह तो अपशकुन हुआ' । यह कहकर क द्ध हो उक्त मुनीश्वर की कदर्थना करने के लिये कुत्तों को छुछकार कर छोड़े। वे अति तीक्ष्ण दाढ़ दांत निकालकर पवन से भी तीव्र वेग से जीभ लपलपाते हुए मुनि के समीप आ
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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