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दयालुत्व गुण पर
पहुँचे । परन्तु तप से प्रज्वलित अग्नि के समान देदीप्यमान मुनि को देखकर औरधि से उतरे हुए विषधर सर्प के समान निस्तेज हो गये ।
वे उक्त महा महिमाशाली मुनिश्वर को तीन प्रदक्षिणा दे पृथ्वी तल में सिर नमाकर चरणों में गिर पड़े । यह देख विलक्ष चित्त हो राजा सोचने लगा कि इन कुत्तों को धन्य है, परन्तु ऐसे मुनि को कष्ट पहुँचाने वाला मैं अधन्य हूँ ।
इतने ही में राजा का बालभित्र अर्हन्मित्र नामक श्रेष्ठिपुत्र जैन मुनि व जिन प्रवचन का भक्त होने से मुनि को नमन करने के लिये वहां आ पहुँचा।
उसने राजा का मुनिको असर्ग करने का अभिप्राय जान लिया । जिससे वह बोला कि हे देव ! आप ऐसे उदास क्यों दीखते हो । राजा ने उत्तर दिया- हे मित्र ! मैं मनुष्यों में श्वान समान हूँ । इसलिये मेरा चरित्र सुनने का तुझे कोई प्रयोजन नहीं। तब वह मित्र बोला कि - हे देव ! ऐसा वचन न बोलो । तुम शीघ्र घोड़े पर से उतरो और उक्त सुदत्त मुनि भगवान को वन्दन करने चलो | क्या आपने इनका जगत् को आश्चर्य में डालने वाला चरित्र नहीं सुना ?
तब राजाने सम्भ्रान्त होकर उसको कहा कि- हे मित्र ! मुझे वह बात कह, क्योंकि सत्पुरुष की कथा भी पापरूप अंधकार का नाश करने के लिये सूर्य की प्रभा के समान है । तब अर्हन्मित्र बोला कि -कलिंग देश के अमरदत्त राजा का सुदत्त नामक पुत्र था । वह न्यायशाली राजा हुआ । उसके सन्मुख किसी समय तलवार एक चोर को लाया और कहने लगा कि - हे देव ! यह