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दयालुत्व गुण पर
.. जिसे सुनकर काल तलवर बोला कि- हे भगवन् ! यह गृहिधर्म करना मैं चाहता तो अवश्य हूँ, किन्तु यह वंश परंपरागत हिंसा नहीं छोड़ सकता । तब मुनि बोले कि- हे भद्र ! जो तू हिंसा त्याग नहीं करेगा तो इन दोनों मुगों की भांति संसार में अनेक अनर्थ पावेगा।
तब तलवर पूछने लगा कि- इन्होंने जीव-हिंसा का त्याग न करके किस प्रकार दुःख पाया है ? तब मुनि ने प्रारंभ से निम्नानुसार उनके भव कहे।
(१) पुत्र और माता (२) मोर और कुत्ता (३) नोलिया और सर्प (४) मत्स्य और शिशुमार (५) मेंढा और बकरी (६) मेंढा और पाड़ा (७) इस समय मुर्गे ।
इस प्रकार उनकी विषम दुःख-पीड़ा सुनकर तलवर को निर्मल संवेग उत्पन्न हुआ। जिससे हृदय में वासित होकर वह भक्ति से बोला कि- हे भगवन् ! इस भयंकर संसार रूप कुए में से मुझे अनेक गुण-निष्पन्न गृहि धर्म रूप रस्सी द्वारा बाहर निकालो। तब मुनि ने उस तलवर को श्रावक धर्म दिया तथा उसे भूल-चूक रहित पञ्च परमेष्ठि मंत्र सिखाया। ___अब उन मुगों ने भी स्पष्टतः मुनि वाक्य सुनकर जाति-स्मरण तथा गृहि धर्म रूप श्रेष्ठ रत्न पाया। वे मुर्गे अति वैराग्य और संवेग पाये हुए, हर्ष से विवश हो उच्च स्वर के साथ कूजने लगे, जिसे राजा ने सुना। ___ तब राजा अपनी रानी जयावली को कहने लगा कि- देखो! मैं कैसा स्वर वेधी हूँ ऐसा कहकर एक बाण से दोनों मुर्गे मार डाले। उनमें से सुरेन्द्रदत्त का जीव जयावली के गर्भ में पुत्र के