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यशोधर की कथा
मुनि बोले कि-हे महाशय ! सहक सर्व जीतों कीक्षा करना यही इस जगत में सामान्यतः एक धार है। उसके विभागका तो इस प्रकार हैं- जीवदया, सत्य वचनालय धने जैत नित्य ब्रह्मचर्य, सकल परिग्रह का त्याग और रात्रि भोजन का विवर्जन । बयालीस दोष रहित आहार का विधि पूर्वक भोजन करना तथा अप्रतिबद्ध विहार करना यह यति जनों का सर्वोत्तम धर्म है।
तब तलवर बोला कि- हे भगवन् ! मुझे गृहस्थ धर्म बताइए। तब परोपकार परायण मुनि इस प्रकार बोले कि-अर्हत् देव, सुसाधु गुरु और जिन भाषित धर्म यही मुझे प्रमाण हैं, ऐसा मानना सम्यक्त्व कहलाता है और उसके पूर्वक (मूल) ये बारह व्रत है।
(१) संकल्प करके निरपराधी त्रस जीवों को मन, वचन और काया से मारना व मरवाना नहीं. (२) कन्यालिक आदि स्थूल असत्य न बोलना. (३) संध लगाना आदि चोरी कहलाने वाला अदत्त नहीं लेना. (४) स्वदारा संतोष रखना व परदारा का त्याग करना. (५) धन धान्यादि परिग्रह का परिमाण करना. (६) लोभ त्याग कर सर्व दिशाओं की सीमा बांधना. (७) मधु मांसादि का त्याग करके विगय आदि का परिमाण करना. (८) यथाशक्ति अति प्रचंड अनर्थ दंड का त्याग करना. (९) फुरसत के समय सदैव समभाव रूप सामायिक करना. (१०) सकल ब्रतों को संक्षेप करके देशावगासिक व्रत करना. (११) देश अथवा सर्व से शक्त्यानुसार पौषध व्रत का पालन करना. (१२) भक्ति पूर्वक साधुओं को पवित्र दान देकर संविभाग व्रत का पालन करना.
इस प्रकार बारह भांति का गृहस्थ धर्म है। उसे विधि पूर्वक पालन करके प्राणी क्रमशः कर्म कचरा विशुद्ध करके परम-पद प्राप्त कर सकते हैं।