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दयालुत्व गुण पर
... पश्चात् उसी नगरी में वे मेंढा व पाड़ा हुए, उनको भी मांसलोलुपी गुणधर राजा ने बहुत दुःख देकर मरवाये । भवितव्यता वश पुनः वे उसी विशाला (उज्जयिनी) नगरी में मातंग के पाड़े में एक मुर्गी के गर्भ में उत्पन्न हुए । ___ उस मुर्गी को दुष्ट बिडाल ने पकड़ी। जिससे वह इतनी डरी कि उसके वे दोनों अंडे घूड़े पर गिर गये। इतने में एक चांडालिनी ने उन पर कुछ कचरा पटका । उसकी गर्मी से वे पक कर मुर्गे के बच्चे के रूप में उत्पन्न हुए।
उनके पंख चन्द्र की चन्द्रिका के समान श्वेत हुई और शुक के मुख समान तथा गुजार्द्ध सदृश उनको रक्त शिखा उत्पन्न हुई। उनको किसी समय काल नामक तलवर (कोतवाल, जेलर) पकड़ कर खिलौने की तरह गुणधर राजा के पास ले आया । राजा ने कहा कि-हे तलवर ! मैं जहां-जहां जाऊँ वहां-वहां तू इनको लाना, तो उसने यह बात स्वीकार की।
अब वसन्त ऋतु के आने पर राजा अन्तःपुर सहित कुसुमाकर नामक उद्यान में गया व काल तलवर भी मुर्गों को लेकर वहां गया । वहां केल के घर के अन्दर माधवी लता के मंडप में राजा बैठा और काल तलवर अशोक वृक्षों को पंक्ति में गया । वहां उसने एक उत्तम मुनि को देखा। ___ तब उसने उक्त मुनि को निष्कपट भाव से वंदना की और मुनि ने उसको सकल सुखदाता धर्मलाभ दिया। उक्त मुनि का शांत-स्वभाव, मनोहर रूप और प्रसन्न मुख-कमल देखकर तलवर हर्षित हो उनको पूछने लगा कि- हे भगवन् ! आपका कौन-सा धर्म है ?