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दयालुत्व गुण पर
तब राजा विचार करने लगा कि- अहो ! रानी को मुझ पर कैसा अटल प्रेम है और कैसा विरह का भय है ? इतने में कोमल
और गंभीर शब्द से दक्षिण हाथ से नमस्कार (सलाम) करते हुए काल निवेदक ने इस प्रकार कहा कि- जगत्प्रसिद्ध उदय प्राप्त कर क्रमशः अपना प्रताप बढ़ाते हुए जगत को प्रकाशित कर अब दिननाथ (सूर्य) अस्त होते हैं। __ यह सुन राजा विचार करने लगा कि- हाय, हाय ! यहाँ कोई भी नित्य सुखी नहीं, कारण कि सूर्य भी विवश हो इतनी दशा भोगता है। पश्चात् संध्या कृत्य कर क्षणभर सभा स्थान में बैठकर राजा नयनावली से विराजते रति-गृह में गया। वहां राजा को संसार स्वरूप का विचार करने में लग जाने के कारण विषय विमुख होने से निद्रा नहीं आई।
नयनावली ने जाना कि राजा को निद्रा आ गई है, अतएव वह अति कामातुर होने से किवाड़ खोलकर वास-गृह से बाहर निकली। राजा विचार करने लगा कि- इस कुसमय यह कैसे निकली होगी ? हां समझा ! मेरे भावी विरह से डरकर निश्चय यह मरने को निकली होगी, अतएव जा कर मना करू। जिससे राजा तलवार लेकर उसके पीछे जाने लगा। रानी ने महल के पहरेदार कुबड़े को जगाया। __ पश्चात् वे दोनों प्रमत्त हुए । इतने में राजा क्रुद्ध होकर भयंकर तलवार का प्रहार करने को तैयार हुआ, कि यह विचार उत्पन्न हुआ।
अरे ! यह मेरी तलवार जो कि उद्भट रिपुओं के हाथियों के कुम्भस्थल को विदारण करने वाली है उसका ऐसे शील-हीन बनों पर किस प्रकार उपयोग करू ? अथवा मेरे निर्धारित अर्थ