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यशोधरा की कथा
के प्रतिकूल यह चिंता करने का मुझे क्या प्रयोजन है ? यह सोच कर वहां से वापस लौटकर उदास मन से राजा अपने शय्या-गृह में आया। ___वहां शय्या में जाकर सोचने लगा कि- अहो ! स्त्री बिना नाम को व्याधि है। बिना भूमि की विषवल्ली है। बिना भोजन 'की विशूचिका है। बिना गुफा की व्याघ्री है। बिना अग्नि की चुडेल है। बिना वेदना को मूर्छा है। बिना लोहे की बेड़ी है और बिना कारण की मौत है । वह यह सोच हो रहा था कि इतने में धीरे-धीरे रानी वहां आ पहुँची, किन्तु राजा ने गांभीर्य गुण धारण करके उससे कुछ भी नहीं कहा ।
इतने में सेवकों ने प्रभात के वाद्य बजाये और काल निवेदक पुरुष गंभीर शब्द से इस प्रकार बोला- इस भारी अंधकार रूप बाल के समूह को बिखेर कर परलोक में गये हुए सूर्य को भी जलांजलि देने के लिये रात्रि जाती है।
तब प्रातः कृत्य करके राजा सभा में आया । वहां मंत्री, सामंत, श्रेष्ठी तथा सार्थवाह आदि ने उसे प्रणाम किया। पश्चात् राजा ने विमलमति आदि मंत्रियों को अपना अभिप्राय कहा । तब उन्होंने हाथ जोड़कर विनन्ती की कि-हे देव ! जब तक गुणधरकुमार कवचधारी नहीं हो तब तक इस प्रजा का आप ही ने पालन करना चाहिये।
तब राजा बोला कि- हे मंत्रिवरों! हमारे कुल में पलित होते हुए कोई गृहवास में रहता हुआ जानते हो? तब वे बोले कि- हे देव : ऐसा तो किसी ने नहीं किया। इस प्रकार मंत्रियों के साथ विविध बातचीत कर वह दिन पूरा करके राजा रात्रि को सुख पूर्वक सोता हुआ पिछली रात्रि में निम्नांकित स्वप्न देखने लगा।