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दयालुत्व गुण का वर्णन
के जीवों को हितकारी हो, मरकर जहां जिनदास देवता हुआ था वहीं देवता हुआ। वहां से वे दोनों जने च्यवन होने पर महाविदेह क्षेत्र में तीथंकर के समीप निर्मल चारित्र ग्रहण कर मुक्ति पावेंगे। ____ अकार्य को त्यागने वाले और सुकार्य को करने वाले, लज्जालु राजकुमार को प्राप्त उत्तम फल सुनकर हे भव्य जनों! तुम भी एकचित्त से उसे आश्रय करो।
* विजयकुमार की कथा समाप्त *
इस प्रकार लज्जालुत्व रूप नौं वे गुण का वर्णन किया । अब दयालुत्व रूप दशवे गुण को प्रकट करने के लिये कहते हैं।
मूलं धम्मस्स दया तयणुगयं सव्यमेवणुट्टाणं । सिद्धजिणिदसमए मग्गिज्जह तेणिह दयाल ॥१७॥
मूल का अर्थ--दया धर्म का मूल है और दया के अनुकूल ही सम्पूणे अनुदान जिनेन्द्र के सिद्धान्त में कहे हुए हैं-इसलिये इस स्थान में दयालुत्व मांगा है याने गवेषित किया है। - टीक का अर्थ- दया याने प्राणी की रक्षा। प्रथम कहे हुए अर्थ वाले धर्म का मूल याने आदि कारण है। जिसके लिये श्री आचारोग सूत्र में कहा है कि--मैं कहता हूं कि जो तीर्थकर भगवान हो गये हैं, अभी वर्तमान हैं और भविष्य काल में होवेंगे, वे सब इस प्रकार कहते हैं, बोलते हैं जानते हैं तथा वर्णन करते हैं कि "सर्व प्राण, सर्व भूत, सर्व जीव और सर्व