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दयालुत्व गुण का वर्णन
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सत्व को नष्ट न करना । उन पर हुकूमत नहीं चलाना । उनको आधीन नहीं करना । उनको मार नहीं डालना तथा उनको हैरान नहीं करना," ऐसा पवित्र और नित्य धर्म दुःखी लोक को जान दुःख ज्ञाता भगवान ने बताया है इत्यादि । इसी से कहा है कि
अहिसैव मता मुख्या, स्त्र मोक्षप्रसाधनी । अस्याः संरक्षणार्थ च, न्याय्यं सत्यादिपालनं ।। मुख्यतः अहिंसा ही स्वर्ग व मोक्ष की दाता मानी हुई है और इसकी रक्षा ही के हेतु सत्यादिक का पालन न्याययुक्त माना जाता है । इसीसे उससे मिला हुआ अर्थात जीव दया के साथ में रहा हुआ सब याने कि- विहार, आहार, तप तथा वैयावृत्य आदि सदनुशन जिनेन्द्र समय में याने सर्वज्ञ प्रणीत सिद्धान्त में सिद्ध याने प्रसिद्ध है। . तथा श्री शय्यंभवसूरि ने भी कहा है कि:--
जयं चरे जयं चिट्ठ जयमासे जयं सए । जयं भुजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधइ ।। ति
यत्न से चलना, यत्न से खड़ा रहना, यत्न से बैठना व यत्न से सोना वैसे ही यत्न से खाना और यत्न से बोलना ताकि पाप कर्म का संचय न हो। औरों ने भी कहा है कि -
न सा दीक्षा न सा भिक्षा न तहानं न तत्तपः । न तज् ज्ञानं न तद् ध्यानं, दया यत्र न विद्यते ।।