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________________ १६ : पंचमहाव्रतधारी, संयमी, साधु, महात्मा प्रच्छन्न अर्थात् गुप्त भोजन क्यों करते हैं, इसका कारण बताते हैं । प्रच्छन्नभोजनाष्टकम् [ ७ ] सर्वारम्भनिवृत्तस्य पुण्यादिपरिहाराय मुमुक्षोर्भावितात्मनः । प्रच्छन्नभोजनम् ॥ १ ॥ मतं भावार्थ — सभी प्रारंभ समारंभ से निवृत्त - पापकारी प्रवृत्तियों से निवृत्त, पुनीत अन्तःकरण वाले, मुमुक्षु भावितात्मा महानुभाव के लिए पुण्यादि परिहार हेतु प्रच्छन्न- गुप्त भोजन उचित माना जाता हैं – [१] भुञ्जानं वीक्ष्य दीनादिर्याचते क्षुत्प्रपीडितः । तस्यानुकम्पया दाने पुण्यबन्धः प्रकीर्तितः ॥२॥ भावार्थ - भूख के दुःख से संत्रस्त - दुःखित दीन - - अनाथ आदि लोग खानेवाले को देखकर उसके पास भिक्षा माँगते हैं । उस समय दीनों पर अनुकम्पा से यदि खाने वाले संयमी महात्मा उन दोनों को दान दें, तो दाता को पुण्यबन्ध होता है -- [२] . नेष्यते भवहेतुत्वतश्चायं पुण्यापुण्यक्षयान्मुक्तिरिति मुक्तिवादिनाम् । शास्त्रव्यवस्थितेः ॥३॥
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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