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जिणपवयणवुड्डिकरं पभावगं नाणदंसण-गुणाणं । . बुड्डतो जिणदव्वं तित्थयरत्तं लहइ जीवो ।। ६७ ॥ मंगलदव्वं निहिदव्वं सासयदव्वं च सबमेगठा । पासायणपरिहारा जयणाए तं खु ठायव्वं ।। ६६ ।।
जिन-द्रव्य तो श्रीजिनप्रवचन की वृद्धि करने वाला, ज्ञानगुण तथा दर्शन गुण की प्रभावना करने वाला होता है । इस द्रव्य को बढ़ाने वाला जीव तीर्थङ्कर पद प्राप्त करता है । यह द्रव्य मंगलद्रव्य है, शाश्वतद्रव्य है एवं निधिद्रव्य है ।
उनके प्रतिष्ठित ग्रन्थों के नाम ये हैं :-- (१) अनेकान्तवादप्रवेश (२) अनेकान्तजयपताका (३) अनुयोगद्वारसूत्र (४) अष्टकप्रकरण (५) आवश्यकसूत्रवृहद्वृत्ति (६) उपदेशपदप्रकरण (७) दशवकालिकसूत्रवृत्ति (८) न्यायप्रवेशसूत्रवृत्ति (६) धर्मबिन्दुप्रकरण (१०) धर्मसंग्रहणीप्रकरण (११) नन्दीसूत्रलघुवृत्ति (१२) पञ्चाशकप्रकरण (१३) पंचवस्तुप्रकरण टीका (१४) पञ्चसूनप्रकरणटीका