SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३६१) बंधनानिकारणानि मत्वा पुनर्विषयग्रामं विषयसमूह विषान्नोपमं विषमिश्रितान्नसमं मत्वा। पुनर्जूर्ति शर्षि नूतिसहोदरांजस्मनगिनीरदासदृशीं मत्वा। पुनः स्त्रैणं स्त्रीणां समूहं तृणमिव तृणसदृशं विदित्वा तेषु श्रासक्तिं अत्यऽजिलापं त्यजन् । कथंनूतो विरक्तः पुमान्? अनाविलः रागवेषाद्यनाकुलः॥ए॥ नाषाकाव्यः-सवैया इकतीसा ॥ जाकों जोगनाव दिसै कारे नागकेसी फन, राजको समाज दीसे जैसै रजकोष है । जाको परिवारकों बढाउ घेरा बंध सूफै, विषै सुखसोंजकों विचारै विषपोष है। लिखै यौं विनूति ज्यौं जसमको विजूति कहै, वनिता विलासमें विलोके दिढ दोष है ॥ ऐसो जानि त्यागै यह महिमा वैराग ताकी, ताहीकों वैराग सही ताके ढिग मोख है ॥ एy ॥ ___ कथाः-हवे वेराग्य उपर कथा कहे . कांचनपुरनगरें विक्रमसेन राजा बे, तेनी पांचशे राणी , तेहज नगरमा एक नागदत्त नामें शेठ वसे बे. तेने विष्णु नामें नार्या महास्वरूपवती . तेने एकदा गोखमां बेग थकां राजायें दीठी, तेवारें सेवको मोकली बोलावी लश्ने बलात्कारें अंतेउरमां मोक adnAAR
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy