SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३४६) प्रति जवांनोधेस्तटं लिप्सते, मुक्तिस्त्रीं परिरिप्सते यदि जनस्तनावयेनावनाम्॥६॥ अर्थः-( यदि के० ) जो ( जनः के०) मनुष्य, ( सर्वं के०) सर्व वस्तुने (झीप्सति के०) जाणवाने श्छे बे, जो वली ( पुण्यं के०) धर्मने (ईप्सति के०) श्छे , जो वली ( दयां के०) दयाने (धित्सति के०) धारण करवाने श्छे , जो वली (अघं के० ) पापने ( मित्सति के० ) मानवाने इछे बे, जो वली ( क्रोधं के०) क्रोधने (दिसति के०) खंमन करवाने श्छे , जो वली ( दानशीलतपसां के०) दान, शील, तपना ( साफल्यं के० ) साफल्यने ( श्रादित्सति के०) ग्रहण करवाने श्छे बे, जो वली ( कल्याणोपचयं के०) कल्याणसमूहने (चिकीर्षति के ) करवाने श्छे , जो वली ( जवांजोधेस्तटं के०) नव जे संसार तेरूप जे समुज तेना तटने (लिप्सते के०) पामवाने श्छे बे, जो वली (मुक्तिस्त्री के०) मुक्तिरूप स्त्रीने (परिरिप्सते के ) थालिंगन करवाने श्छे ले ( तत् के० ) तो ( नावनां के )शुजनावनाने (जावयेत् के० ) नावना करे ॥ ६ ॥
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy